शर्म आती है यह कहते हुए की ये ...... हमारे रक्षक हैं।
हम अपने अधिकारों की मांग करते हैं और जायज़ मांग करते है और हमारे साथ इस तरह का सुलूक होता है,क्या यही लोकतंत्र है। हम खुद पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं और हमारे साथ ये शर्मनाक सुलूक किया जाता है हमारी ही सरकार और हमारे ही रक्षको के द्वारा। जो ये शपथ खाते हैं की हम जनता की प्राण-प्रण से सेवा करेंगे, क्या इन्हें जनता के रक्षक कहना उचित है ....शायद नहीं।
"जब रक्षक और भकक्षक में कोई फर्क ही न रह जाए तो एक आम आदमी के पास क्या रास्ता रह जाता है, या तो ख़ुदकुशी कर ले या बन्दूक उठा ले। ख़ुदकुशी करता है तो कायर कहलाता है और बन्दूक उठता है तो अपराधी बन जाता है।"
पर इन तथाकथित लोकतंत्र के रक्षको ने जनता को आन्दोलन और अपने अधिकार छीनने पर मजबूर कर दिया है। अब जनता चुप नहीं बैठेगी...जनता अपना हक लेकर रहेगी। —
सरकार ने उन लोगो पर लाठी चार्ज कराया हॆ जो लोग हाँथो मे मोमबत्ती जलाकर शानतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे अब उन प्रदर्शन कारियो को चाहिये कि वही मोमबत्ती सरकार के पिछवाडे लगा दे...
सरकार ने उन लोगो पर लाठी चार्ज कराया हॆ जो लोग हाँथो मे मोमबत्ती जलाकर शानतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे अब उन प्रदर्शन कारियो को चाहिये कि वही मोमबत्ती सरकार के पिछवाडे लगा दे...
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